सफर - मौत से मौत तक….(ep-24)
इतवार (सण्डे)
आज नंदू इंतजार कर रहा आने वाले मेहमानों का…. वो जानता था कि मेहमान पहुंचेंगे तो वो दोपहर तक ही, फिर भी जिसके आने की खुशी होती है तो आने का इंतजार बढ़ जाता है।
सुबह सुबह समीर उठा, आज सण्डे था, आज के दिन तो वो ग्यारह बजे तक उठता था लेकिन आज नया जाने क्यो रोज की तरह उठ गया था। और जल्दी जल्दी नहा धोकर तैयार हो गया और नाश्ता करने लगा।
नंदू छत से गमलों को पानी देकर नीचे आ रहा था, तो उसने देखा तैयार बैठा समीर खाना खा रहा था।
"अरे! क्या बात है बेटा? तुम कहीं जा रहे हो।" नंदू ने पूछा।
"हां पापाजी……कोई जरूरी काम से जाना पड़ रहा है" समीर बोला।
"ज्यादा जरूरी है क्या….कल नही हो सकता वो काम" नंदू ने पूछा
"पापा आज का का काम कल पर नही टालना चाहिए, बहुत जरूरी काम होगा तभी जा रहा हूँ" समीर बोला।
"लेकिन आज कोई मेहमान आने वाले है, और तुम्हारा घर पर होना बहुत जरूरी भी" नंदू ने कहा।
"पापा आप सम्भाल लेना उन्हें, मेरे लिए मेहमान नही मेरा काम जरूरी है" समीर बोला।
"अच्छा काम करके आ जाना, दिन तक तो आ ही जायेगा" नंदू ने कहा।
"कोई भरोसा नही, हाँ कोशिश जरूर करूँगा, दो तीन बजे तक वापस आने की" समीर ने कहा।
ठीक है, इतना वक्त तो उन्हें भी लग जायेगा पहुंचने में" नंदू में कहा।
"वैसे….कौन आने वाले है आज,जरा मुझे भी तो पता चले" समीर ने पूछा।
नंदू ने मुस्कराते हुए कहा- "ये पता करने के लिए तुम्हे इंतजार करना होगा, वो क्या बोलते है जब किसी को अचानक बताना हो तो….??????
"सरप्राइज……" समीर ने जवाब दिया।
"हां वही….तुझे वही देना है" नंदू बोला।
"चलो जैसा आप ठीक समझे, अभी मैं चलता हूँ,वैसे भी कुछ दिन में आपको भी वही देना है मैंने जो आज अपमुझे देने की सोच रहे हो" समीर मुस्कराते हुए बोला और चला गया।
नंदू ने पीछे से आवाज दी……- "दो बजे तक पक्का समझू…."
"कोशिश करूंगा……तीन बजे तक पक्का समझ लो" समीर बोला।
नंदू भी दरवाजे तक जाकर गाड़ी बैक करता देखने लगा और जब समीर गेट से बाहर चले गए तो नंदू वापस अन्दर को आ गया।
*****
गेट से थोड़ी दूर जाते ही समीर ने इशानी को फोन किया
"आ जाओ….घर से अपने….मैं गली के बाहर वेट करूँगा" समीर बोला।
"समीर तुम वहीं झील पर पहुँचो, मैं वही आ जाऊँगी" इशानी ने कहा।
"लेकिन तुम वहाँ तक कैसे आओगी?? मैं आ जाता हूँ ना" समीर ने कहा।
"अरे बुद्धू….वो मुझे प्रिंस छोड़ देगा, उसने भी उसी तरफ जाना है, तुम्हे उल्टा पड़ेगा, पहले इधर आओ, फिर ले जाओ, इतनी देर में आप और मैं दोनो झील पहुंच जाएंगे"
इशानी बोली।
समीर ने चिढ़े चिढ़े मन से कहा- "वो सब तो ठीक है लेकिन प्रिंस को आने में भी वक्त लगेगा"
"नही वो पास ही खड़ा है…….चलो हम निकल रहे है,जल्दी झील पहुँचो" इशानी बोली
"ओके टेक कियर एंड सी यू…." कहते हुए समीर ने फोन काट दिया।
ना जाने समीर को इशानी एयर प्रिंस की दोस्ती अच्छी नही लगती थी। उनकी ही नही बल्कि इशानी का किसी भी लड़की से दोस्ती करने में एतराज था उसे…. हालांकि वो खुले तौर पर ये कहता नही था। ना ही इशानी को कभी टोकता था। लेकिन वो हमेशा चाहता था कि इशानी प्रिंस से दूर रहे। लेकिन प्रिंस तो समीर से पहले से ही इशानी का फ्रेंड रहा था, फ्रेंड ही नही बेस्ट फ्रेंड था उसका। बार बार इशानी उसकी तारीफ भी किया करती थी। लेकिन फिर भी कभी कभी उन दोनों की दोस्ती समझ नही आती थी, और एक तरह से शक पैदा होने लगता था, और शक तो रिश्तों का दुश्मन होता है इसलिए समीर शक से दूर रहने की कोशिश करता था।
समीर झील पहुँचा, बस थोड़ी ही देर मे समीर के कार के पसेक बाइक रुकी जिसमे इशानी थी, इशानी बाइक से उतरी और प्रिंस को बाय किया। प्रिंस बिना समीर की तरफ देखे ही निकल पड़ा। उसे जाते हुए देखकर समीर ने इशानी से कहा- "एक बात पूछूं……???..…ऐसे दोस्त भी किस्मत वालो को मिलते होंगे ना"
"हाँ….बहुत अच्छा लड़का है,मेरे बचपन का दोस्त….मेरे फेमिली मेम्बर से है, मम्मी पापा भी बहुत तारीफ करते है उसकी, और भरोसा भी करते है उसपर।" इसानी ने कहा।
"अच्छी बात है….ऐसे दोस्त जिंदगी में होने भी चाहिए….वैसे एक सवाल बोलू??" समीर ने इजाजत मांगी।
"एक क्यो दो पूछ लेना, लेकिन अंदर तो चलो, सड़क मे ही पूछोगे क्या…" इशानी ने समीर का हाथ पकड़कर उसे झील की तरफ ले जाते हुए कहा।
दोनो जाकर झील के किनारे बैठ गए और ठहरे हुए पानी मे कंकड़ के छोटे छोटे टुकड़े फेंककर तरंग बनाते हुए बातें करने लगे जिस चक्कर मे समीर का सवाल मन मे ही रह गया।
"ये ठहरे हुए पानी का रंग इतना गहरा क्यो होता है,जबकि बहता हुआ पानी का कोई रंग नही होता" इशानी ने समीर का हाथ कसकर पकड़ते हुए कहा।
समीर इशानी के हाथ के ऊपर हाथ रखकर उस हाथ को सहलाते हुए बोला।
"ये ठहरा हुआ पानी जिंदगी की हकीकत है, जबकि बहता हुआ पानी समय का पहिया….समय बीतता कभी दिखता नही, वो भी रंगहीन होता है। जबकि जिंदगी की हकीकत जब सामने आती है तो बहुत सारे लोग रंग बदलते नजर आने लगते है। और जिंदगी रंगीन हो जाती है इस पानी की तरह.……मटमैली सी……"
इशानी ने रोमांटिक अंदाज में सवाल पूछा और समीर का जवाब ऐसा आया कि अगला सवाल का गला घोंट के उसे पूछा ही ना जाये। जब एक जवाब पल्ले नही पड़ा तो अगले सवाल का क्या अचार डालती वो।
"आप जवाब याद करके आये थे क्या….ऐसा लॉजिकल जवाब की उम्मीद नही थी मुझे आपसे" इशानी बोली।
"नही….एक बार पापा से मैंने भी यही पूछा था, तब उन्होंने ये जवाब दिया था मुझे।" समीर बोला।
"मेरे और आपके ख्याल कितने मिलते है ना….देखो इस ठहरे हुए पानी को देखकर हम दोनों के मन मे सेम सवाल आया" इशानी बोली।
"हाँ ये तो है….विचार मिलते है तभी तो रिलेशनशिप में है, वरना आजतक टिकता ये रिश्ता" समीर बोला।
"ये बात भी है, लेकिन रिश्ते अगर दिल से जुड़े हो तो हमीशा जुड़े रहते है….और हमारे दिलों के ये रिश्ते…….उम्रभर जुड़े रहेंगे" इशानी बोली।
"फिर तो ये उम्र कब कट जाएगी पता भी नही चलेगा, वैसे भी तुम्हारे साथ बिताया एक घंटा भी मिनट लगता है" समीर बोला।
"हाँ….मुझे भी" कहते हुए इशानी ने अपना सिर झुकाकर समीर के कंधे में रख दिया।
"लेकिन एक टेंशन है यार…." समीर ने कहा।
"किस बात की टेंशन??" इशानी ने सवाल किया।
"मेरे पापा मेरी शादी अपने दोस्त की लड़की से तय करना चाहते है…." समीर बोला।
इशानी ने अपना सिर समीर के कंधे से उठाकर उसके चेहरे की तरफ देखते हुए कहा- "सिर्फ पापा ही चाहते है ना….इसमे टेंशन क्या है, मेरे पापा भी लड़का ढूंढ रहे, मैं भी टाल रही हूँ उन्हें, कुछ दिन टालना ही तो है"
"हाँ….मैंने तो साफ साफ बोल दिया कि मैं मन्वी से शादी नही करूँगा……शादी करने के लिए वही मिली है क्या मुझे, ऑटो वाली की लड़की….मैंने पापा को बोल दिया दुनिया मे लास्ट लड़की भी मन्वी होगी तो भी नही करुंगा शादी" समीर ने कहा।
"आपने ये सब बोल दिया है तो प्रॉब्लम कहां आ रही है। वैसे भी अगर ज्यादा बोले तो उन्हें वो कागज दिखा देना जो हमारी कोर्ट मैरिज की है। हमने कानूनी तौर पर शादी तो कर ही ली है। बस हमारी भारतीय संस्कृति के नाम पर ढोंग ही करना बाकी रह गया है।" इशानी ने कहा।
"वो तो एमरजेंसी के लिए है, जब बड़ा बवाल होगा, छोटी छोटी मुश्किले तो प्यार मोहब्बत में आती ही है" समीर ने कहा।
"फिर टेंशन क्यो ले रहे, जब जानते हो कि छोटी मुश्किले तो प्यार मोहब्बत में आती ही है।" इशानी ने कहा।
"चलो छोड़ो टेंशनबाजी, बोटिंग करते है…….मैं टिकट लेकर आता हूँ" समीर ने कहा।
दोनो खड़े उठते है,
"अरे टिकिट मैं ले आती हूँ, लेडीज लाइन में जल्दी नम्बर आ जायेगा" इशानी बोली।
समीर ने अपने पर्स से पैसे निकालकर इशानी को थमाए और खुद उसके साथ जाकर उसकी लाइन से थोड़ी दूर खड़ा हो गया।
थोड़ी देर इंतजार के बाद इशानी टिकिट लेकर आ गयी।
दोनो नाव में बैठे और सुबह के साढ़े दस बजे ठंडी हवा की लहरों के साथ शांत पानी मे बहने लगे।
दोनो एक दूसरे से दूर बैठकर एक दूसरे की तरफ़ देख रहे थे, समीर पतवार घुमाए जा रहा था और इशानी एक किनारे बैठकर झील से हाथ मे पानी भरकर उछाल रही थी, कभी अपने ऊपर तो कभी समीर की तरफ।
चुप हैं बातें, दिल कैसे बयाँ मैं करूँ?
तू ही कह दे वो जो बात मैं कह ना सकूँ
समीर खुद मुस्कराते हुए अपने चेहरे की तरफ आते ठंडे पानी से सिहरते हुए इशानी को मस्ती करते हुए देख रहा था। एक अलग तरह का शुकुन था। ना ठंड का मौसम ना गर्मी थी। ना सुबह की ठंडी छाया ना दोपहर की तेज धूप थी। बदन पर गिर रही पानी की बूंदों में भी प्यार था और एक संगीत था। उपर से इशानी कुछ ना कुछ कहानी समीर को सुना रही थी। कभी फिल्मो की बातें तो कभी अपनी लाइफ के किस्से, हर बात को समीर सुन रहा था, समझने का वक्त नही था उसके पास, वो बस सुनते रहना चाहता था। खिलते मुस्कराते चेहरे में खिलखिलाते हुए शब्द इशानी के होठों से एक धुन की तरह निकलकर समीर के कानों में गूंज रही थी। समीर के मन भी भी अलग से एहसास थे।
कि संग तेरे पानियों सा,
पानियों सा, पानियों सा बहता रहूँ
तू सुनती रहे, मैं कहानियाँ सी कहता रहूँ
कि संग तेरे बादलों सा,
बादलों सा, बादलों सा उड़ता रहूँ
तेरे एक इशारे पे तेरी ओर मुड़ता रहूँ
दूसरी तरफ….
राजू और मन्वी दोनो आज बस में सफर कर रहे थे। मन्वी खिड़की वाले शीट में बैठी दौड़ते हुए पहाड़ियों और बहते हुए बादलो में समीर को देख रही थी, और जो समीर उसे नजर आ रहा था वो आज का समीर नही उन दिनों का समीर था, जब वो उसके करीब थी। जब दोनो दोस्त हुआ करते थे। मन्वी के मन मे भी बैचेनिया थी, उसकी जिंदगी में भी आज एक खुशी आने की उम्मीद थी। जिसे वो महसूस कर पा रही थी।
आधी ज़मीं, आधा आसमाँ था
आधी मंज़िलें, आधा रास्ता था
इक तेरे आने से मुक़म्मल हुआ सब ये
बिन तेरे जहाँ भी बेवजह था
ये एहसास मन्वी के थे, समीर के लिए, मगर समीर के एहसासो में सिर्फ इशानी थी। मन्वी को तो वो लगभग भूल चुका था। याद था तो सिर्फ मन्वी उसके स्कूल टाइम की एक लड़की थी, जो बहुत झगड़ालू थी। उसके अलावा कुछ याद रखने की कोशिश ही नही की थी कभी।
समीर और इशानी नाव से उतरे और 11 बजे शुरू होने वाली मूवी को देखने सिनेमाहॉल की तरफ निकल पड़े, जो दो घंटे की थी और दो बजे खत्म होनी थी, आज घर से आने की खास वजह तो वही थी। सबसे इम्पोर्टेन्ट काम जिसे समीर कल पर नही टालना चाहता था।
तेरा दिल बनके मैं साथ तेरे धड़कूँ
खुद को तुझसे अब दूर ना जाने दूँ
कि संग तेरे पानियों सा,
पानियों सा, पानियों सा बहता रहूँ
तू सुनती रहे, मैं कहानियाँ सी कहता रहूँ
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कहानी जारी है------
की संग मेरी
बाकी भी,बाकी भी, बाकी भी
कहानिया पढ़ते रहो,
अभी बस
इतना ही , इतना ही, इतना ही
आगे के लिए इंतजार करो
अगले दिन
अगला भाग , अगला भाग,अगला भाग आएगा।
आप थोड़ा धीरज धरो….😊😊😊
Shalini Sharma
23-Sep-2021 12:00 AM
Very nice
Reply
रतन कुमार
19-Sep-2021 09:15 AM
Badiya kahani likhi h apne
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